भक्ति-भाव के महापरब-सावन मास


Shiv Shambhuव्रती मन सोमवार रखथे अउ फल फलहरी खाके उपास ल तोड़थें। शिवलिंग के पूजा में बेल पत्ता के अब्बड़ महत्व हे। पूजा में सिरिफ तीन पत्ती वाला अखंडित बेल पत्ता ही चढ़ाय जाथे। ये तीनों पत्ता ल मन, वचन अउ करम के प्रतीक माने गेहे। शिवलिंग में अधिकतर तीन लकीर वाला त्रिपुण्डी होथे। येहा शिव परमात्मा के त्रिमूर्ति, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी अउ त्रिलोकीनाथ होय के चिन्हा आय। कनेर, धतूरा, फूड़हर केशरइया, दूध, दही, घी सहद, शक्कर, जल, गंगाजल, चंदन सरसों तेल के उपयोग पूजन अउ अभिषेक म करे जाथे।


सावन भक्ति-भाव के महारब आय। ये बेरा भक्ति ले जम्मो वातावरण सराबोर हो जाय रिथे। लइका से लेके जवान, डोकरी-डोकरा संग माइलोगन अपन भक्ति के परिचय देथें। भक्त चार प्रकार के होथे। आर्त, जिग्यासु, अथारथी, विग्यान निवास। शास्त्र में बताय गेहे कि भक्ति तक नव ठन होथे। जोन अब्बड़ सरल हे- श्रवण, कीरतन, इस्मरण, चरणसेवा, अरचन, वन्दन, आत्म-निवेदन, दासत्व अउ सत्य। जम्मो छत्तीसगढ़ के गांव-शहर, चउक-चउराहा में तुलसीदासकृत रामचरित्र मानस के पठन अउ सरवण हो थे। दिन भर के बुता करे के बाद मुंधियार कुन रामायण ल निकारथे। ताहले पढ़े बर बइठ जथे। धीरे-धीरे करके सुनइया मन के तक भीड़ जम जाथे। तब भक्ति रस के धारा बोहात रिथे। कोन्हो-कोन्हो जघा रामायण बर मंडली के मनखे मन जुरमिल के ये आयोजन ल सफल बना थे। जोन गीत-संगीत के संग रामायण प्रस्तुत करथे। काबर कि मरयादा पुरूसोत्तम भगवान राम के चरित्र ह घर-परिबार में सुख-समरिद्धि जगा थे।

राम के प्रति छत्तीसगढ़िया मन के लगाव कूट-कूट के भराय हे। छत्तीसगढ़ के पहिली नाम कोसल देश रहिस अऊ दक्छिन कोसल के राज भानुमंत के बेटी के बिहाव अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के संग होईस। कोसल देश ले आय के कारण राम के महतारी के नाम कोसल्यिा पड़िस। आज भी ये परम्परा हमर छत्तीसगढ़ में हाबे। जइसे रायपुर ले बिहाव हो के आय माइलोगन ल रइपुरहीन, बिलासपुर के ला बिलासपुरहीन, दुर्ग के ला दुरगहीन, कोरबा के ला कोरबाहीन, धमधा के ला धमधाहीन, राजिम के ला राजिमहीन आदि। छत्तीसगढ़ राम के ममा देश आय। इंकर सेती भांचा के पांव परे के परम्परा आज ले हाबे। राम ल भगवान विष्णु के अवतार माने गेहे अउ रामायण राम के भक्ति करेके श्रेष्ठ साधन आय। ये महिना एक डाहन राम के जयकारा होथे त दूसर डाहन शिव भक्त मन हर-हर महादेव के जयकारा लगा के भक्तिमय बना देथे। कहे जाथे कि राम ह शिवजी ला ईश्वर मानथे, तब शिव ह घलो राम ला मानथे। अइसने ढंग ले दूनो के आराधना मनवांछित फल देवइया आय। सावन भर शिवभक्त शिवपीठ में पानी चढ़ाय बर गेरुवा उन्हा पहिरे कांवर धर के बिना पनही के निकल जाथे।

व्रती मन सोमवार रखथे अउ फल फलहरी खाके उपास ल तोड़थें। शिवलिंग के पूजा में बेल पत्ता के अब्बड़ महत्व हे। पूजा में सिरिफ तीन पत्ती वाला अखंडित बेल पत्ता ही चढ़ाय जाथे। ये तीनों पत्ता ल मन, वचन अउ करम के प्रतीक माने गेहे। शिवलिंग में अधिकतर तीन लकीर वाला त्रिपुण्डी होथे। येहा शिव परमात्मा के त्रिमूर्ति, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी अउ त्रिलोकीनाथ होय के चिन्हा आय। कनेर, धतूरा, फूड़हर केशरइया, दूध, दही, घी सहद, शक्कर, जल, गंगाजल, चंदन सरसों तेल के उपयोग पूजन अउ अभिषेक म करे जाथे। शिवलिंग में अभिषेक संग धारा के खास महत्व बताए गेहे।धारा के अरथ कोन्हों द्रव्य पदार्थ ले लिंगमें उत्ताधुर्रा धार रितोते रहना हे। पूरबकाल मेंस मुंदर मंथन ले निकले हलाहल जहर ल सृष्टि के रक्छा खातिर भगवान भोलेनाथ अपन कंठ में धारण कर लिस। जेकर ले वोकर देह ह तपते रथे। अब्बड़ अकन जीनिस ले नहवाय ले वोला शांति मिलथे। ताहन अपन भगत बर प्रसन्न होके कृपा करथे।

छत्तीसगढ़ मं अब्बड़ अकन शिवपीठ हे। जिंहा भगवान खुद धरती फोड़ के निकले हे त कोन्हो जघा भगत मन लिंग के इस्थापना करे हें- राजिम में पंचमुखी कुलेश्वरनाथ, सोमेश्वर नाथ, गरीबनाथ, भूतेश्वरनाथ, दान-दानेश्वरनाथ, राज राजेश्वर नाथ, पंचेश्वरनाथ, बटुकेश्वरनाथ, बम्हनी म बह्मनेश्वरनाथ, फिंगेश्वर मं फणिकेश्वरनाथ कोपरा मं कर्पूरेश्वरनाथ, लफंदी मं औघड़नाथ, गरियाबंद म भूतेश्वर (भकूर्रा) नाथ महादेव, सिहावा मं कर्णेश्वरनाथ महादेव, शिवरीनारायण मं चन्द्रचूड़, महेश्वरनाथ महादेव, रतनपुर मं बूढ़ेश्वरनाथ महादेव, खरौद म लक्छमेश्वरनाथ महादेव, पीथमपुर मं कालेश्वरनाथ महादेव, पाली में शिवमंदिर, सिरपुर मं गंधेश्वरनाथ, बिलासपुर म पातालेश्वरनाथ, आरंग म महादेव आदि। ये जम्मो शिवपीठ में आके भगत मन सुख सान्ति के अनुभव करथें।

शिवजी ल देवों के देव महादेव माने गेय हे। पंचाच्छरी मंत्र ॐ नम: शिवाय अभीष्ठ फल देनावाला हरे। वइसने हे अउ मंत्र हे जेकर जाप भारी फायदा देथे।

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम्।
उर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मातृतात्॥

ये मंत्र अकाल मृत्यु, दुर्घटना आदि में जीवन प्रदान करथे. सांप अउ बिच्छू के चाबे में अपना पूरा प्रभाव नई छोड़ सकय। कठिन अउ असाध्य रोग सहित जम्मो बीमारी ल भगाय के ये हा बड़ेच जान शस्त्र आय। पुत्र-पुत्री अउ बढ़िया पति-पत्नी बर महादेव के पूजा, आराधना उपास भगत मन रखथें, तब मनवांछित फल तक मिलथे। सावन ल तंत्र-मंत्र सिध्दि के श्रेष्ठ महिना तक माने गेय हे. कुल मिला के सावन सुहावन होथे।

संतोषकुमार सोनकर ‘मंडल’
चौबेबांधा, राजिम

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